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पुस्तकालय में वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक पुस्तक को व्यक्तिगत संख्या प्रदान करना है अर्थात पुस्तकालय में पुस्तकों को एक निश्चित सहायक क्रम में व्यवस्थित किया जाता है इसके लिए पुस्तकों को कृत्रिम अंक प्रदान किए जाते हैं यह कृतिम अंक ही पुस्तकों को व्यक्तित्व प्रदान करते हैं इन अंको को ही क्रमांक संख्या या कॉल नंबर कहा जाता है

डॉक्टर रंगनाथन के अनुसार पुस्तकालय में एक प्रलेख की अन्य प्रलेख के मध्य तथा सूची में किसी प्रविष्टि की अन्य प्रविष्टि के मध्य सुनिश्चित सापेक्षिक स्थिति को दर्शाने वाली संख्या को क्रमांक संख्या कहते हैं

क्रमांक संख्या के 3 भाग होते हैं 1- क्लास नंबर २-बुक नंबर 3-कलेक्शन नंबर

Class number- वर्गीकरण पद्धति में किसी पुस्तक में वर्णित विशिष्ट विषय के लिए प्रत्येक सांकेतिक अंक क्लास नम्बर कहलाता है अर्थात क्लास नंबर क्रमांक संख्या का भाग है जो किसी प्रलेख के विशिष्ट विषय का प्रतिनिधित्व प्रदान करता है

डॉक्टर रंगनाथन के अनुसार किसी पुस्तक का क्लास नंबर उसके विशिष्ट विषय के नाम का क्रम दर्शक अंक की कृतिम भाषा में अनुवाद है इस प्रकार क्लास नंबर द्वारा किसी प्रलेख का विशिष्ट विषय रूपांतरित किया जाता है अथवा प्रलेख को क्लास नम्बर प्रदान करने के लिए प्रलेख में वर्णित विषय का क्रमिक संख्या की भाषा में अनुवाद किया जाता है इस भाषा को वर्गीकरण सांकेतिक भाषा द्वारा निर्मित वर्ग संख्या के संकेत चिन्हों का अर्थ लगाने से विशिष्ट वर्गीकृत विषय का ज्ञान हो जाता है

वर्गीकरण पद्धति (Classification scheme)

पुस्तकालय में पाठ्य सामग्री का संग्रह किया जाता है एवं इसके उपयोग की व्यवस्था की जाती है इस व्यवस्था की पद्धति को वर्गीकरण पद्धति कहते हैं वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य पाठ्य सामग्री को इस प्रकार व्यवस्थित करना है जिससे इसका उपयोग सुविधा पूर्वक हो सके इसके लिए आवश्यक है कि एक वैज्ञानिक वर्गीकरण पद्धति हो

वर्गीकरण पद्धति के प्रकार- पुस्तकालय वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य विषय के अनुसार पुस्तकों का वर्गीकरण करना है डॉक्टर रंगनाथन ने विषयों के वर्गीकरण के लिए मुख्य रूप से निम्न पद्धतियां दी हैं

1- परिगनात्मक पद्धति ( enumerative scheme)

2- लगभग परिगनात्मक पद्धति ( almost enumerative scheme)

3- लगभग पक्षात्मक पद्धति ( almost faceted scheme)

4- अपरिवर्तनीय पक्षात्मक पद्धति ( Rigidly Faceted scheme)

5- मुक्त पक्षात्मक पद्धति (Freely Faceted scheme)

प्रमुख वर्गीकरण पद्धतियां

Dewey decimal classification -melvil Dewey 1876

Expensive classification – charls cutter 1891

Library of Congress classification- Library of Congress 1904

Universel decimal classification- institute international D. Bibliography 1905

Subject classification – James Duff Brown 1906

Colon classification – S. R. Ranganathan 1933

Bibliographic classifications – H.E. bliss 1935

Notation अंकन

अंकन की परिभाषा

एच ई ब्लिस के अनुसार — अंकन किसी क्रम व्यवस्था में चिन्हों अथवा प्रतीकों की एक विधि है जिससे पदों अथवा किसी माला के प्रतिनिधियों अथवा वस्तुओं के व्यवस्था क्रम को निर्दिष्ट किया जाता है

डॉ रंगनाथन के अनुसार — किसी वर्गीकरण पद्धति में वर्गों को प्रस्तुत करने के लिए प्रयुक्त क्रमिक अंको की विधि को अंकन (notation) कहते है।

अंकन के प्रकार

अंकन दो प्रकार के होते हैं

1- शुद्व अंकन (pure notation ) // 2. मिश्रित अंकन ( Mixed Notation)

1. Pure notation — शुद्ध अंकन वह है जिसका निर्माण केवल एक ही प्रकार के प्रतीकों अथवा चिन्हों से होता है उदाहरणार्थ- 1 – 9 or A to Z .

शुद्ध अंकन का सर्वोत्तम उदाहरण मेलविल dewey की DDC (दशमलव वर्गीकरण पद्धति) है इसमें शुद्ध अंकन का उपयोग सर्वप्रथम किया गया था इस प्रणाली में मात्र अरेबिक अंकों का ही उपयोग किया गया है C.A. Cutter का एक्सपेंसिव क्लासिफिकेशन भी एक दृष्टि से शुद्ध अंकन का माना जाता है

2. Mixed Notation – मिश्रित अंकन शेर तात्पर्य उस अंकन से है जिसका निर्माण दो या दो से अधिक प्रतीकों अथवा चिन्हों से होता है उदाहरणार्थ — (0,1,2,3 ……. 7,8,9) or ( A to Z ) or ( a to z) or (∆ ,; : . () )

मिश्रित अंकन का उपयोग सर्वप्रथम रिचर्ड्सन महोदय ने अपने प्रणाली प्रेस्टन स्कीम में किया और इसकी उपयोगिता को बढ़ाया जिसके अंतर्गत संख्याओं और अक्षर दोनों का उपयोग है

लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस , सब्जेक्ट क्लासिफिकेशन , कोलन क्लासिफिकेशन , बिबलियोग्राफिक क्लासिफिकेशन मिश्रित अंकन के उदाहरण है।

COPYRIGHT LAW IN INDIA

भारत में कॉपीराइट अधिनियम एक्ट 1957 21 जनवरी 1958 को लागू हुआ था यह पहले प्रकाशित तस्वीरों के लिए 50 वर्ष था इसमें 6 बार संशोधन हो चुका है कॉपीराइट एक कानूनी शब्द है जिसका प्रयोग रचनाकारों के साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के अधिकारों के वर्णन के लिए किया जाता है जिसमें पुस्तकें ,संगीत ,पेंटिंग ,मूर्तिकला ,फिल्म ,कंप्यूटर प्रोग्राम ,डेटाबेस ,विज्ञापन, मानचित्र और तकनीकी चित्र आदि शामिल है प्रतिलिपि अधिकार बौद्धिक संपदा का ही भाग है भारत में प्रतिलिपि अधिकार लेखक की मृत्यु के बाद 60 वर्षों तक रहता है

ISBN

ISBN(international standard book number) प्रत्येक पुस्तक को प्रदान किए जाने वाला एक विशिष्ट पहचान संख्या है ब्रिटेन के David Whitaker को ISBN के पिता की संज्ञा दी जाती हैं।1971 में (ISO) international organization for standardization द्वारा 10 अंकों का ISBN विकसित किया जो ISO2108 के तहत प्रकाशित किया गया। जनवरी 2007 से ISBN 13 अंको का और पाँच भागो में विभक्त हो गया पहला भाग ean(european article number ) होता है ,दूसरा भाग भाषा आदि ,तीसरा भाग प्रकाशक, चौथा भाग टाइटल और पांचवा भाग चेक डिजिट होता है।

ISSN

ISSN( International standard serial number) यह 8 अंकों की विशिष्ट संख्या है जो पुस्तकों की भांति ही सामयिक प्रकाशनों को प्रदान किया जाता है 1971 में ISSN विकसित किया गया जिसको ISO 3297 के तहत 1975 में प्रकाशित किया गया था मुद्रित संस्करण के लिए pISSN और इलेक्ट्रॉनिक संस्करण के लिए के eISSN प्रदान किया जाता है।

ISSN एक 8-अंकीय कोड है जिसका उपयोग समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पत्रिकाओं और सभी प्रकार के पत्रिकाओं और सभी मीडिया-प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक पर पहचानने के लिए किया जाता है।
एक आईएसएसएन (अंतर्राष्ट्रीय मानक सीरियल नंबर) सभी जारी संसाधनों की पहचान करता है, भले ही उनका माध्यम (प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक) कुछ भी हो:

समाचार पत्र, वार्षिक प्रकाशन (रिपोर्ट, निर्देशिका, सूचियाँ, आदि),पत्रिकाएं,संग्रह,वेबसाइटें,
डेटाबेस,ब्लॉग, आदि
कई देशों में, कानूनी जमा के अधीन सभी प्रकाशनों के लिए एक आईएसएसएन अनिवार्य है।
ISSN संक्षिप्त रूप ISSN का रूप लेता है, जिसके बाद चार अंकों के दो समूह होते हैं, जिन्हें एक हाइफ़न द्वारा अलग किया जाता है। आठवां अंक एक चेक अंक है जिसकी गणना पिछले 7 अंकों के आधार पर एक मापांक 11 एल्गोरिथम के अनुसार की जाती है; यदि किसी अस्पष्टता से बचने के लिए कंप्यूटिंग का परिणाम "10" के बराबर है, तो यह आठवां नियंत्रण अंक "X" हो सकता है।
आईएसएसएन 0317-8471
आईएसएसएन 1050-124X

ISSN की भूमिका एक प्रकाशन की पहचान करना है।

यह बिना किसी आंतरिक अर्थ के एक डिजिटल कोड है:

इसमें प्रकाशन की उत्पत्ति या सामग्री के बारे में कोई जानकारी शामिल नहीं है,
यह सामग्री की गुणवत्ता या वैधता की गारंटी नहीं देता है।
ISSN प्रकाशन के शीर्षक से जुड़ा है। यदि प्रकाशन को महत्वपूर्ण रूप से संशोधित किया गया है, तो एक नया आईएसएसएन असाइन किया जाना चाहिए।

ISBD

ISBD ( International standard bibliographic description) —

आई.एम.सी.ई. के फलस्वरूप 1971 में आईएसबीडी का एक ढांचा प्रस्तुत किया गया तथा प्रकाशित किया गया जिसे बाद में आईएसओ द्वारा अनुमोदित किया गया आईएसबीडी का अर्थ प्रसूचिकरण करते समय प्रविष्ट में ग्रंथों का विवरण प्रदान करने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित मानकों से होता है जिसे ग्रंथपरक सूचना के अंतरराष्ट्रीय संप्रेषण हेतु एक उपकरण के रूप में माना गया है तथा जो ग्रंथ पर विवरण में साम्यरूपता लाने में मदद करता है इस नई ग्रंथ पद विवरण पद्धति को कई राष्ट्रीय ग्रंथ सूची में जैसे ब्रिटिश नेशनल बिबलियोग्राफी ने अपनी सूचियों में शामिल किया है ISBD, IFLA के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक है ISBD कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के ग्रंथालय सामग्री के लिए एकरूपिय ग्रंथपरक ढांचा प्रदान करना है जो भिन्न ग्रंथपरक उपययोगों की आवश्यकता को पूरा करता है

Types of ISBD

ISBD (M) —– MONOGRAPH

ISBD (G) —–GENRAL

ISBD (S) —– SERIALS

ISBD (C.M.) —– CARTOGRAPHIC MATERIAL

ISBD (P.M.)—-PRINTED MUSIC

ISBD (C.P.,) —– COMPONANT PARTS

ISBD (O.B.)—–old printed book

ISBD (A.V.)—–AUDIO VISHUAL MATERIAL

ISBD(C.F.) —– COMPUTER FILES

reference service

एस.आर.  रंगनाथन के अनुसार "संदर्भ सेवा व्यक्तिगत रूप से एक पाठक और उसके दस्तावेजों के बीच संपर्क स्थापित करने की प्रक्रिया है।"  A...